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धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है

धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है

कोविड-19 के प्रभाव के चलते इस बार धान की रोपाई के लिए मजदूरों का संकट हर क्षेत्र में देखा जा सकता है। धान की सीधी बिजाई इसका श्रेष्ठ समाधान है। 

धान की खेती सीधी बुवाई कम पानी वाले, जलभराव वाले एवं वर्षा आधारित खेती वाले सभी इलाकों में की जा सकती है। 

धान तिलहन है या दलहन

धान ना तो तिलहन है ना दलहन है। दलहनी फसल में होती है जिनमें से तेल निकलता है यानी सरसों अरंडी तिल अलसी आदि। 

दलहनी फसलें वह होती है जिनकी दाल बनाई जाती है यानी चना उर्दू मून मशहूर राजमा आदि। धान अनाज है खाद्यान्न है। 

क्या है सीधी बिजाई का तरीका

धान की सीधी बिजाई गेहूं जो जैसी फसलों की तरह ही की जाती है। बिजाई के लिए धाम को नर्सरी डालने की तरह ही 12 घंटे पानी में भिगोया जाता है उसके बाद जूट के बैग में अंकुरित होने के लिए रखा जाता है।

कार्बेंडाजिम 223 जैसे किसी फफूंदी नाशक से उपचारित किए हुए इस बीच को थोड़ा खुश्क करके बो दिया जाता।

क्या है सीधी बिजाई के फायदे

इस तकनीकी से धान की फसल लगाने से उत्पादन लागत में भारी कमी आती है। 50 से 60% तक डीजल की बचत होती है। 30 से 40 फ़ीसदी श्रमिकों पर होने वाले खर्चे में बचत होती है। 

उर्वरकों के उपयोग में भी इजाफा होता है। इस तरह धान की फसल लेने से जहरीली मीथेन गैस का उत्सर्जन भी बेहद कम हो जाता है जोकि पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से अहम है। 

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कब करें धान की बुवाई

धान की खेती बुवाई मानसून आने से 10 से 15 दिन पूर्व कर देनी चाहिए। इससे पूर्व खेत को तीन से चार बार एक एक हफ्ते के अंतराल पर गहरा जोतना चाहिए। 

जुताई के बीच में अंतराल इसलिए रखना चाहिए ताकि जमीन ठीक से सीख जाए और उसमें मौजूद हानिकारक फफूंदी नष्ट हो जाएं। खेतों को कभी एक ही बार में तीन से चार बार नहीं जोतना चाहिए। 

सीधी बिजाई के लिए धान की किस्में

धान की सीधी बिजाई के लिए पूसा संस्थान की सुगंध 5, 1121, पीएचवी 71, नरेंद्र 97, एमटीयू 1010, एच यू आर 3022, सियार धान 100 किस्म प्रमुख हैं। 

बीज दर

सीधी बिजाई के लिए मोटे धान की 20 से 25 किलोग्राम बीज एवं बारीक धान की 10 से 12 किलोग्राम बीज को अंकुरित करके बोया जा सकता है। 

उर्वरक प्रबंधन

धान की सीधी बिजाई के लिए आखरी जुताई की समय 50 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश एवं 25 किलोग्राम जिंक को आखरी जुताई में मिला देना चाहिए। 

जिंक और फास्फोरस को एक साथ नहीं मिलाना चाहिए अन्यथा फास्फोरस निष्प्रभावी हो जाता है। 100 से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन की जरूरत होती है इसकी एक तिहाई मात्रा जुताई में मिला दें बाकी फसल बढ़वार के लिए प्रयोग में लाएं। 

खरपतवार नियंत्रण

धान की सीधी बुवाई के बाद पेंडा मैथलीन दवा की एक किलोग्राम मात्रा को पर्याप्त पानी में घोलकर बुवाई के 24 घंटे के अंदर मिट्टी पर छिड़क देना चाहिए ताकि खरपतवार उगें ही नहीं। 

फसल बढ़वार के समय उगने वाले खरपतवार को मारने के लिए नॉमिनी गोल्ड दवा का छिड़काव करें।

धान की खेती की रोपाई के बाद करें देखभाल, हो जाएंगे मालामाल

धान की खेती की रोपाई के बाद करें देखभाल, हो जाएंगे मालामाल

धान की खेती की रोपाई का आखिरी सीजन चल रहा है। जो किसान भाई अपने खेतों में धान के पौधों की रोपाई कर चुके हो वह यह न मान कर चलें कि खेती का काम समाप्त हो गया है। खेती के बारे में कहा जाता है कि खेती का काम कभी समाप्त ही नहीं होता है। एक फसल कटने के बाद दूसरे फसल की तैयारी शुरू हो जाती है। जो किसान भाई धान की फसल से अच्छी पैदावार चाहते हैं। यदि समय पर धान के पौधों की रोपाई कर ली हो तो उसके बाद की देखभाल करनी चाहिये। फसल की जितनी अधिक देखभाल करेंगे। समय पर खाद, पानी और निराई गुड़ाई करायेंगे, उतनी ही अच्छी पैदावार पायेंगे। ऐसे किसानों की धान की खेती से अन्य किसानों की अपेक्षा अधिक आमदनी हो सकती है। आइये हम जानते हैं कि रोपाई के बाद धान के खेत में किन-किन खास बातों का ख्याल रखना पड़ता है।

रोपाई के बाद रखें खरपतवार का ख्याल

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे पहले तो जुलाई के माह में हर हाल में धान की रोपाई हो जानी चाहिये। जिन किसान भाइयों ने धान के पौधे की रोपाई कर ली हो तो उनहें रोपाई के दो-तीन दिनों के भीतर खरपतवार को नियंत्रित करने वाली दवा डालनी चाहिये ताकि धान की फसल में अनचाही घास अपनी पकड़ न बना सके। इसके दो सप्ताह के बाद फिर खेत का अच्छी तरह से मुआयना करना चाहिये। उस समय भी खरपतवार को देखना होगा। यदि खरपतवार बढ़ रही हो तो उसका उपाय करना चाहिये। इसके अलावा खेत में यह भी देखना चाहिये कि जहां पर पौधे न उगे हों जगह खाली बच गयी हो अथवा पौधे खराब हो गये हों। उनकी जगह नये पौधे लगाने चाहिये। इस गैप को भरने से फसल भी बराबर हो जायेगी और पैदावार भी अच्छी होगी। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=QceRgfaLAOA&t[/embed]

पानी के प्रबंधन पर दें ध्यान

वर्षाकाल में धान की पौध को रोपने के बाद वर्षा का इंतजार करें और यदि वर्षा न हो तो सिंचाई का प्रबंधन करें। किसान भाइयों को रोपाई के बाद इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि एक सप्ताह तक खेत में दो इंच पानी भरा रहना चाहिय् इसके अलावा प्रत्येक सप्ताह खेत की निगरानी करते रहना चाहिये। खेत सूखता दिखे तो सिंचाई करना चाहिये। धान में फूल आते समय तथा दाने में दूध पड़ने के समय खेत में पर्याप्त नमी रखने का प्रबंध करना चाहिये। ऐसा न करने से पौधे सूख सकते हैं और उत्पादन प्रभावित हो सकती है। लेकिन कटाई से 15 दिन पहले से सिंचाई बंद करना चाहिये।

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उर्वरकों का प्रबंधन भी जरूरी

धान की खेती में अच्छी पैदावार के लिए समय पर सिंचाई के बाद  उचित समय पर खाद एवं उर्वरक का भी प्रबंधन किया जाना जरूरी होता है। धान की बुआई के समय गोबर की खाद के अलावा नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का इस्तेमाल करना चाहिये। लेकिन नाइट्रोजन का इस्तेमाल धान की रोपाई के बाद कई बार दिया जाता है। अलग-अलग किस्मों के लिए अलग-अलग तरह से उर्वरकों का इस्तेमाल किया जाता है। 1.जल्दी पकने वाली किस्मों में बुआई से पहले प्रति एकड़ 24 किलो नाइट्रोजन, 24 किलो फॉस्फोरस और 24 किलो पोटाश को डालना चाहिये। रोपाई के बाद जब कल्ले निकलते दिखें उस समय किसान भाइयों को 24 किलो नाइट्रोजन को डालना चाहिये। इससे अच्छी पैदावार हो सकती है। 2.देर से पकने वाली फसलों के लिए प्रति एकड़ 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 25 किलो फॉस्फोरस और 25 किलो पोटाश बुआई के समय दिया जाना चाहिये तथा रोपाई करने के बाद जब कल्ले निकलते नजर आयेंं तो 30 किलो नाइट्रोजन का छिड़काव खेतों में करना चाहिये। इससे दाने अच्छे बनते हैं। पैदावार भी अच्छी होती है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=BS9nx-38oGo&[/embed] 3.सुगंधित चावल के धान की फसल देर से पकती है। इस तरह की फसल के लिए प्रति एकड़ 50 किलो नाइट्रोजन, 25 किलो फास्फोरस और 25 किलो पोटाश तो बुआई के समय डाली जानी चाहिये। इसके बाद जब कल्ले और बालियां निकलने वाले हों तो उस समय 50 किलो नाइट्रोजन, 12 किलो फॉस्फोरस और 12 किलो पोटाश डालनी चाहिये। इससे उत्तम क्वालिटी का धान पैदा होता है। साथ ही पैदावार बढ़ जाती है। 4.सीधी बुवाई वाली फसल में 50 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फॉस्फोरस, 20 किलो पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से बुआई के समय डाला जाना चाहिये। इसके अलावा 50 किलो नाइट्रोजन खरीद लें तो जिसके चार हिस्से कर लेना चाहिये। एक हिस्सा तो रोपाई के समय डालना चाहिये। इसका दो गुना हिस्सा कल्ले निकलते समय डालना चाहिये। इसके बाद बचा हुआ एक हिस्सा बालियां निकलते समय डालना चाहिये।

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कीट पर नजर रखें और उपाय करें

धान के पौधों की लगातार निगरानी करते रहना चाहिये क्योंंंंकि कल्ले निकलने से लेकर दाने में दूध पड़ने तक अनेक तरह के कीट एवं रोगों का हमला होता है। किसान भाइयों को चाहिये कि खेतों की निगरानी करते समय जिस कीट अथवा रोग की जानकारी मिले, उसका तुरन्त इंतजाम करना चाहिये।

सैनिक कीट

रोपाई के बाद सबसे पहले सैनिक कीट की सूंडियों के हमले का डर रहता है। यह कीट पौधों को इस प्रकार खा जाती है जैसे लगता है कि पशुओं के झुंड ने खेत को चर डाला हो। जब भी इस कीट के हमले का संकेत मिले।  उसी समय मिथाइल पैराथियान या फेन्थोएट का 2 प्रतिशत चूर्ण पानी में मिलाकर घोल बनाकर छिड़काव करें।

गंधीबग कीट

रोपाई के बाद खेतों में हमला करने वाले कीटों में गंधी बग कीट प्रमुख है। इस कीट के खेत में आक्रमण होते ही बहुत दुर्गन्ध आने लगती है। ये कीट पौधों में दूधिया अवस्था में लगता है। यह कीट दूध चूस कर दानों को खोखला कर देता है। इससे धान पर काले धब्बे बन जाते हैं और उसमें चावल नही बनते। इस कीट के आक्रमण का संकेत मिलने पर मैलाथियान धूल 5 डी 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करें। इसके अलावा किसान भाई क्विनालफॉस 25 ईसी दो मिली प्रतिलीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इसके अलावा एसीफेट 75 एस पी डेढ़ ग्राम प्रतिलीटर पानी में मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।  कार्बारिल या मिथाइल पैराथियान धूल को 25-30 किलोग्राम से पानी में मिलाकर छिड़काव करने से लाभ मिलता है।

तनाच्छेदक कीट

रोपाई से लगभग एक माह बाद तनाच्छेदक कीट लगने की संभावना रहती है। यह कीट फूल व बालियों को नुकसान पहुंचाता है। इसका पता लगते ही ट्राइकोकार्ड (ततैया) एक से डेढ़ लाख प्रति हेक्टेयर प्रति सप्ताह की दर से 6 सप्ताह तक छोड़ें। इसके अलावा कार्बोफ्रयूरॉन 3 जी या कारटैप हाइड्रोक्लोराइज 4 जी या फिप्रोनिल 0.3 जी 25 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। क्विनॉल, क्लोरोपायरीफास का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।

हरा फुदका

हरे फुदका भी ऐसा कीट होता है जो पौधों के तने का रस चूस कर नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट की खास बात यह है कि यह पत्तों में नही लगता बल्कि तने में चिपका रहता है। काले, भूरे व सफेद रंग के ये फुदके फसल के लिए काफी खतरनाक होते हैं। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए कार्बोरिल 50 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लीटर या बुप्रोफेजिन 25 एस एस 1 मिली प्रति लीटर का प्रति प्रयोग करना चाहिये। इससे लाभ होगा। इसके अतिरिक्त  इमिडाक्लोरोप्रिंड 17.8 एसएस, थायोमेथोक्जम 25 डब्ल्यूपी, बीबीएमसी 50 ईसी का भी प्रयोग किसान भाई कर सकते हैं। यदि आपका खेत बस्ती के आसपास है तो आपको चूहों से भी सतर्क रहना होगा। चूहों के नियंत्रण के लिए आसपास के खेत वालों के साथ मिलकर उपाय करने होंगे पहले विषरहित खाद्य चूहों को देना चाहिये। एक सप्ताह बाद जिक फॉस्फाइड मिला खाद्यान्न देना चाहिये। इससे चूहे समाप्त हो सकते हैं। इसक अलावा कटाई, मड़ाई समय पर करनी चाहिये। मड़ाई के बाद अच्छी तरह सुखाने आदि का प्रबंधन भी किसान भाइयों को करना चाहिये।
धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

हमारे देश के बड़े भूभाग में धान की फसल की जाती है। पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत में तो धान की ही मुख्य फसल होती है। धान की फसल की बुआई, रोपाई और कटाई में बहुत से श्रमिकों की आवश्यकता होती है। किसान भाइयों आज का समय पैसे कमाने का समय है। प्रत्येक व्यक्ति अपने परिश्रम का अधिक से अधिक मेहनताना लेना चाहता है। इसके लिए आज के श्रमिकों ने खेती किसानी का काम छोड़ करन परदेश जाकर कारखानों में काम करना शुरू कर दिया है। इस वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों का अभाव हो गया है। इस वजह से खेती किसानी करना बहुत मुश्किल होता जा रह है। जो श्रमिक गांवों में बचे रह गये हैं वे भी अपने अन्य भाइयों के समान औद्योगिक श्रमिकों की तरह मेहनताना मांगते हैं। इससे खेती की लागत उतनी अधिक बढ़ जाती है जितना उत्पादन नहीं हो पाता है। इसलिये किसान भाई वो काम नहीं कर पाते हैं।

धान की फसल की बुआई, रोपाई और कटाई

Content

  1. समय पर कटाई से बच जाता है नुकसान
  2. हंसिया (Sickle)
  3. ब्रश कटर (Brush Cutter)
  4. क्या होता है ब्रश कटर
  5. कम्बाइंट हार्वेस्टर (Combined Harvester Machine)
  6. क्या होती है कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)
  7. क्या होता है कम्बाइंड हार्वेस्टर कटर
  8. रीपर मशीन (Reaper Machine)
  9. क्या होता है रीपर मशीन
  10. हाथ से चलने वाली मशीन (हैंड रीपर)
  11. छोटे वाहन वाली मशीन (सेल्फ प्रॉपलर मशीन)
  12. ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन (ट्रैक्टर माउंटेड)

समय पर कटाई से बच जाता है नुकसान

खेती किसानी का काम समय से होना चाहिये तभी आपको अधिक उत्पादन मिल सकता है। श्रमिकों के अभाव में किसान भाइयों की खेती प्रभावित होती है। कभी लेट बुआई होती है तो कभी निराई गुड़ाई नहीं हो पाती है। कभी सिंचाई देर से हो पाती है अथवा फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई नहीं हो पाती है। कीट व रोग के प्रकोप से नियंत्रण में भी असर पड़ता है। कुल मिलाकर श्रमिकों के बिना खेती पूरी तरह से प्रभावित होती है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को खेती के आधुनिक तरीके और आधुनिक उपकरणों और मशीनों का इस्तेमाल करना चाहिये। इन मशीनों व उपकरणों से मानव श्रम से अधिक और बहुत ही साफ सुथरा काम हो जाता है। लागत  व समय भी कम लगता है। आइये हम आज धान की फसल को काटने वाली छोटे उपकरण से लेकर बड़ी मशीनों तक की चर्चा करेंगे। जो इस प्रकार है:-
  1. हंसिया या हंसुआ: (Sickle)

यह किसानों का पारंपरिक कटाई का औजार, उपकरण या हथियार है। इससे किसी प्रकार की फसल की कटाई की जा सकती है। धान की फसल की कटाई इसी हथियार से की जाती है। छोटे किसान आज भी अपने परिवार के साथ इसी हथियार से कटाई करते हैं। इससे फसल की कटाई में काफी समय लगता है। जब धान की फसल पक गयी हो और खेत में पानी भरा हो तब यही हथियार फसल की कटाई के काम आता है।
  1. ब्रश कटर (Brush Cutter)

हाथ से कटाई करने में बहुत श्रमिक और बहुत समय लगता है। इससे किसान भाइयों का समय व पैसा बहुत बर्बाद होता है। धान की फसल की समय पर कटाई होनी बहुत जरूरी होती है। यदि समय पर धान की फसल की कटाई नहीं की गई तो बहुुत नुकसान होता है। आज के समय में खेतों में काम करने वाले मजदूर न मिलने के कारण किसानों के समक्ष बहुत बड़ी समस्या उत्पन्न हो गयी है। ऐसे में समय पर कटाई करना किसान भाइयों के लिए टेढ़ी खीर बन गयी है। इस समस्या को आधुनिक यंत्रों व मशीनों के द्वारा हल किया जा सकता है। पहले तो व्यापारियों ने धान की फसल कटाई के लिए बड़ी बड़ी मशीनें मार्केट में उतारीं, जिन्हें किराये पर लेकर काम कराया जा सकता था। लेकिन इन मशीनों का किराया भी इतना अधिक था कि प्रत्येक किसान उसको वहन नहीं कर सकता था। इसलिये अब बाजार में छोटी मशीनें आ गयी है। इसमें एक ब्रश कटर नाम से एक ऐसी मशीन आ गयी है, जिसको किसान अकेले ही दस मजदूरों के बराबर फसल की कटाई कर सकता है।  पेट्रोल से चलने वाली यह मशीन महीनों का काम घंटों में कर देती है। ये भी पढ़े: आधुनिक तकनीक अपनाकर घाटे से बचेंगे किसान

कितना है मैनुअल व मशीन के काम व दाम में अंतर

जानकार लोगों का दावा है कि एक एकड़ की मजदूरों द्वारा खेती की धान की फसल की कटाई पर लगभग 5 हजार रुपये का खर्च आता है। लेकिन इस मशीन से मात्र 500  रुपये में एक ही व्यक्ति कटाई कर सकता है। यदि किसान भाई यह काम करने में सक्षम हो तो ठीक वरना इस मशीन को चलाने वाले बहुत से लोग आ गये हैं। इस मशीन की खास बात यह है कि इसमें फसल के अनुसार ब्लेड लगाकर अलग-अलग तरह की फसलों की कटाई की जा सकती है। यह मंशीन कंधे पर टांग कर फसल की कटाई की जा सकती है। खेत में पानी भी भरा हो तब भी किसान भाई इस मशीन से कटाई कर सकते हैं। यदि किसान भाई इस मशीन की मेंटीनेंस अच्छी तरह से करे तो यह मशीन अपनी कीमत एक साल में ही निकाल देती है। यह मशीन अधिक महंगी भी नहीं है।

क्या होता है ब्रश कटर (Brush Cutter):-

ये भी पढ़े: भूमि की तैयारी के लिए आधुनिक कृषि यन्त्र पावर हैरो छोटे किसानों के लिए यह एक ऐसी आधुनिक मशीन है, जिसके माध्यम से किसान भाई केवल धान फसल की कटाइई ही नहीं कर सकते हैं बल्कि इससे अनेक प्रकार की फसलों च चारे की कटाई आसानी से कर सकते हैं। इस मशीन से खेतों में रुका हुआ थोड़ा बहुत पानी भी निकाल सकते हैं। अब यह मशीन पेट्रोल और मोबिल आयल से चलने वाली 4 स्ट्रोक वाली मोटर से लैस मशीन है। इसमें एक हैंडल दिया गया है। हैंडल के आगे कटर लगाने के लिए स्थान दिया गया है। इसमें आप अपनी जरूरत के ब्लेड लगाकर अपनी मनचाही फसल काट सकते हैं। इसका वजन 7 से 10 किलो तक का होता है।

किसी ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं

इस मशीन को चलाने के लिए कोई खास ट्रेनिंग नहीं लेनी होती है। शुरू के 10 से 15 मिनट में नये व्यक्ति को परेशानी होती है। एक बार इसको चलाने का तरीका जानने के बाद इसे आसानी से चलाया जा सकता है। इतनी ट्रेनिंग मशीन बेचने वाली कंपनी के टेक्नीशियन दे देते हैं। इसके अलावा इस मशीन को किसान भाई तो चला सकते हैं और उनकी अनुपस्थिति में घर की महिलाएं भी आसानी से चला सकतीं हैं।
  1. कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)

धान फसल की कटाई के लिए कम्बाइंड हार्वेस्ट मशीन का उपयोग तेजी से होने लगा है। इस मशीन के माध्यम से खेत में खड़ी फसल की बालियों यानी अनाज की कटाई की जाती है और उसकी मढ़ाई और गहाई की जाती है। यह मशीन जमीन से 30 सेंटीमीटर ऊपर से फसल काटती है और खेत में ठूंठ छोड़ देती है इससे पुआल का नुकसान होता है। दूसरा समय पर खेत को खाली करने के लिए किसान भाइयों को जल्दी होती है और उस समय कोई दूसरा उपाय न सूझने के कारण खेत में पराली को जला दिया जाता है। इससे जानवरों के चारे का नुकसान होता है दूसरा पर्यावरण प्रदूषित होता है।

नुकसान के बावजूद है फायदे का सौदा

हालंकि मजदूरों की अपेक्षा आधी कीमत पर बहुत कम समय में अच्छी तरह से कटाई, मढ़ाई और गहाई हो जाती है। इसलिये किसान भाई इस मशीन का इस्तेमाल करते हैं। इस तरह की मशीन का इस्तेमाल बड़े किसान भाई करते हैं जिनके पास लम्बी चौडी खेती है और समय पर मजदूर नहीं मिल रहे हैं तो उनके पास इसी तरह की मशीन का ही एकमात्र विकल्प बचता है। लेकिन इस मशीन की इस कमी को देखते हुए अनेक तरह के आकर्षक रीपर मार्केट में आ गये हें। जिनसे जमीन से 5 सेंटी ऊपर की कटाई की जाती है। इससे किसान भाइयों के समक्ष ठूंठ व पराली वाली समस्या नहीं आती है।  चारे व अन्य काम के लिए बची पुआल भी काम में आ जाती है।

क्या होती है कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन (Combined Harvester Machine)

यह मशीन वास्तव में बड़े किसानों के इस्तेमाल के लिए होती है। यह मशीन महंगी होती है तथा इसको किराये पर चलाने के उद्देश्य से भी लिया जा सकता है। यह मशीन सूखे खेत में ही चलाई जा सकती है। जो किसान भाई कम्बाइंड हार्वेस्टर मशीन का इस्तेमाल करना चाहें तो प्रॉपलर या ट्रैक्टर में लगाकर इस मशीन को इस्तेमाल कर सकते हैं। इस तरह की मशीन बनाने वालों में दशमेशर, हिंद एग्रो, न्यू हिन्द, प्रीत, क्लास आदि ब्रांड के हार्वेस्टर कटर आते हैं। ये चौड़ाई के अनुसार दो फिल्टर्स आते हैं। इनकी चौड़ाई 1 से 10 व 11 से 20 फीट तक होती है। इसके अलावा आप अपनी जरूरत के हिसाब की चौड़ाई वाले फिल्टर्स का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  1. रीपर मशीन (Reaper Machine)

यह भी ब्रश कटर से मिलती जुलती मशीन है। इस मशीन में भी कटर का इस्तेमाल होता है। इस मशीन की खास बात यह है कि यह कई साइजों में आती है। इस मशीन को किसान भाई अपनी क्षमता व जरूरत के हिसाब से लेकर इस्तेमाल कर सकते हैं अथवा किराये पर लेकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यह मशीन हाथ ठेले के रूप में इस्तेमाल की जा सकती है, इसे मिनी ट्रैक्टर या छोटी गाड़ी में भी लगाकर फसल की कटाई की जा सकती है। इसको बड़े ट्रैक्टर में भी लगाकर फसल की कटाई की जा सकती है। यह मशीन धान की फसल की कटाई के लिए तो उपयुक्त है ही। साथ ही गेहूं  सहित अनेक फसलों को भी इससे काटा जा सकता है।

क्या होती है रीपर मशीन (Reaper Machine)

आधुनिक कृषि उपकरणों में इस मशीन की गिनती होती है। यह मशीन ऐसी है जिसे हर तरह का किसान अपनी क्षमता के अनुसार खरीद कर फसल की कटाई आसानी से कर सकता है। जहां पर फसल की कटाई के लिए कम्बाइंड हावेस्टर और ट्रैक्टर नहीं पहुंच पाता है वहां पर यह मशीन काम आती है। यह मशीन छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी आती है। मुख्यत: तीन प्रकार की ये मशीन होती है।
    1. हाथ से चलने वाली मशीन हैंड रीपर (Hand Reaper Machine)
    2. छोटे वाहन वाली मशीन सेल्फ प्रॉपलर मशीन (Self Propeller Machine)
    3. ट्रैक्टर से चलने वाली मशीन ट्रैक्टर माउंटेड (Tractor Mounted Machine)
  1. हाथ से चलने वाली मशीन हैंड रीपर (Hand Reaper Machine)

यह मशीन मूलत: छोटे किसानों के लिए होती है। यह एक पॉवरफुल मशीन होती है जो हाथों से एक व्यक्ति द्वारा चलाई जाती है। इसमें एक 5 हॉर्सपॉवर का इंजन लगा होता है। पेट्रोल व डीजल से चलने वाले इंजन अलग-अलग आते हैं। इसमें आगे की तरफ रीपर में ब्लेड़स लगे रहते हैं जिससे फसल की कटाई की जाती है। इसमें पीछे एक हैंडल लगा होता है और इसमें दो मजबूत रबर के टायर भी लगे होते हैं। हैंडल में दो गियर भी लगे होते हैं। किसान भाई हैंडल को पकड़ कर इस मशीन को खेतों में धकेलते जाते हैं और गियर के इस्तेमाल से फसल की कटाई होती रहती है। यदि इस मशीन को कहीं दूर ले जाना होता है तो इसको मोटर व मशीन को आसानी से अलग-अलग भी किया जा सकता है और इस्तेमाल के समय जोड़ा भी जा सकता है।
  1. छोटे वाहन वाली मशीन यानी सेल्फ प्रॉपलर मशीन (Self Propeller Machine)

जो किसान मध्यम श्रेणी में आते हैं और जिनकी खेती का रकबा थोड़ा बड़ा होता है, जो थोड़ा ज्यादा पैसा खर्च कर सकते हैं तो वे छोटे वाहन यानी सेल्फ प्रॉपलरवाली मशीनों को खरीद कर फसल की आसान कटाई कर सकते हैं। इसमें एक सीटर वाहन होता है। उसमें रीपर में ब्लेड लगे होते हैं। इस एक सीटर वाहन में किसान भाई आराम से बैठ कर रीपर के माध्यम से फसलों की कटाई आसानी से कर सकते हैं। समय, पैसा दोनों ही बचा सकते हैं। ये भी पढ़े: कल्टीवेटर से खेती के लाभ और खास बातें

रीपर बाइंडर मशीन (Reaper Binding Machine)

रीपर बाइंडिंग मशीन ऐसी मशीन होती है जो खेत में फसल की कटाई के साथ पौधों का बडल यानी पूला बना देती है। इससे किसान भाइयों को काफी सुविधा होती है।
  1. ट्रैक्टर माउंटेड मशीन (Tractor Mounted Machine)

यह मशीन बड़े किसानों के लिए होती है। यह मशीन ट्रैक्टर में लगायी जाती है। यह मशीन उन किसानों के लिए है, जिनकी बड़ी काश्तकारी है और उनके पास काम करने वाले श्रमिकों की संख्या कम होती है। ऐसे किसान अपने खेत के काम निपटा कर दूसरों के खेतों पर कटाई का व्यवसाय कर सकते हैं। इस तरह से किसान इसको किराये पर चला कर अपना व्यवसाय भी कर सकते हैं।
धान की कटाई के बाद भंडारण के वैज्ञानिक तरीका

धान की कटाई के बाद भंडारण के वैज्ञानिक तरीका

हमारा देश विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक देश है। हमारे देश में 50 प्रतिशत धान का इस्तेमाल खाने के रूप में होता है। धान की खेती की देखभाल समय से नहीं करने पर काफी नुकसान होता है। विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार धान की फसल की बुआई, सिंचाई, कटाई, मड़ाई, गहाई और भंडारण समय और सही तरीके ने नहीं करने से उत्पादन का 10 प्रतिशत का नुकसान होता है। इसमें थोड़ी सी लापरवाही भंडारण के समय हो जाये तो यह नुकसान काफी बढ़ जाता है। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि वो धान के भंडारण के समय वैज्ञानिक तरीका अपनायें तो होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। आइये जानते हैं कि धान के भंडारण के समय कौन-कौन सी सावधानियां बरती जानी चाहिये।

Content

  1. क्यों होती है भंडारण की आवश्यकता
  2. धान के भंडारण की प्रथम तैयारी
  3. भंडार गृह के लिए उचित स्थान
  4. भंडार गृह कैसा बनवायें
  5. कीटाणु रहित गोदाम बनवाने के लिए करें ये काम
  6. पुरानी बोरियों का इस तरह से करें इस्तेमाल
  7. कीट प्रबंधन के लिए करें ये काम
  8. बोरों को कीटाणु रहित बनाने के लिए करें ये उपाय
  9. हवा का रुख देखकर करें भंडारण

क्यों होती है भंडारण की आवश्यकता

पूरे साल पर धान यानी चावल मिलता रहे। इसके लिए धान के भंडारण की आवश्यकता होती है। इसके लिए किसान भाइयों को चाहिये कि धान का उचित तरीके से भंडारण करें। भंडारण से पूर्व नमी की मात्रा सुरक्षित कर लें। लम्बी अवधि के लिए धान के भंडारण के लिए उसमें नमी की मात्रा 12 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिये। यदि कम समय के लिए भंडारण करना है तो धान में नमी का प्रतिशत 14 तक चलेगा।
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धान के भंडारण की प्रथम तैयारी

धान के भंडारण करने के लिए एक अच्छी जगह तलाश करनी चाहिये। इस स्थान पर भंडार गृह बनाने से पहले जमीन को कीटमुक्त कर लेना चाहिये। उसके बाद भंडारण की तैयारी करनी चाहिये।

भंडार गृह के लिए उचित स्थान

धान के भंडार गृह के निर्माण के लिए उचित स्थान एक ऊंची जगह होनी चाहिये।जहां पर पानी न भरता हो और बरसात आदि का पानी तत्काल निकल जाता हो। इसके साथ ही इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिये कि भंडार गृह में नमी व अत्यधिक गर्मी, धान नाशक कीट, चूहों तथा खराब मौसम का प्रभाव न होता हो। भंडार गृह में जमीन से 20 से 25 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर लकड़ी से प्लेटफार्म बनाकर उसमें बोरियों की छल्लियों को लगायें ताकि जमीन से सीलन न आ सके और अनाज को नुकसान से बचाया जा सके।

 भंडार गृह कैसा बनवायें

भंडारण से पहले या बाद में भंडारित कीटों से बचाव करने के लिए भी वैज्ञानिक प्रबंध करने जरूरी हैं। भंडारण के लिए पारंपरिक रूप से विभिन्न आकारों और विभिन्न सामग्रियों के बने बड़े बड़े पात्र प्रयोग किये जाते हैं। इन्हें कोठी, कुठला आदि ग्रामीण भाषा में कहा जाता है। ये पात्र लकड़ी, मिट्टी, बांस, जूट की बोरियों, ईंटों, कपड़ों आदि उपलब्ध वस्तुओं से बनाये जाते हैं। इस तरह के पात्रों में थोडे समय के लिए धान का भंडारण किया जा सकता है जबकि लम्बे समय के लिए भंडारण करने के लिए आधुनिक भंडार गृह बनवाने चाहिये। लम्बी अवधि के लिए धान के भंडारण के लिए पूसा कोठी, धातुओं की कोठी, साइलो स्टील जैसे आधुनिक भंडारण गृह आदि का प्रयोग किया जाता है। इसमें धान को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। ये भी पढ़े: धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी

कीटाणु रहित गोदाम बनाने के लिए करें ये काम

आम तौर पर भवनों में बनने वाले भंडार गृह में धान के बोरों के दो ढेरों के बीच उचित हवा का संचारण के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध करानी चाहिये। साफ मौसम के दौरान उचित हवा संचारण होनी चाहिये जबकि वर्षा के मौसम से इससे बचना चाहिये। गोदाम मं धान या चावल के सुरक्षित भंडारण से पहले उसे उपयुक्त धुआं देकर कीटाणु रहित करना चाहिये। भंडार गृह को अच्छीतरह से साफ कर लेना चाहिये। वहां पर पुराने दाने नहीं रहने देना चाहिये। भंडार गृह की दरारों व छेदों को अच्छी तरह से भर देना चाहिये।

पुरानी बोरियों का इस तरह से करें इस्तेमाल

भंडारण के दौरान धान के नुकसान को कम करने के लिए रोगमुक्त बीट्वील पटसन के थैलों में सूखे हुए धान रखने चाहिये। केवल नयी व सूखी बोरियों का ही धान को रखने में प्रयोग करना चाहिये। यदि पुरानी बोरियों में ही धान की फसल को रखा जाना जरूरी हो तब उस दशा में पुरानी बोरियों को एक प्रतिशत मालाथियान के उबलते हुए घोल में 3 से 4 मिनट तक भिगोएं और फिर उसको धूप में अच्छी तरह से सुखा कर उसमें धान को रखें। यदि विद्युत चालित यंत्र से भी बोरियों को सुखाया जा सकता है तो उसे सुखा लें लेकिन यह तय कर लें कि उनमे नमी न रह जाये।

कीट प्रबंधन के लिए करें ये काम

भंडारण गृह में कीट प्रबंधन करना बहुत जरूरी होता है। इसके लिए गोदाम में साधारण मौसम में प्रत्येक 15 दिन में प्रति 100 वर्ग मीटर क्षेत्र में मालाथियान (Malathiyan) (50 प्रतिशत ईसी) 10 लीटर पानी में एक लीटर मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। सर्दियों के दिनों मे इस तरह के घोल का छिड़काव 21 दिन में एक बार अवश्य कर देना चाहिये।
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यदि किसी कारण से मालाथियान न मिल सके तो उसकी जगह पर किसान भाई 40 ग्राम डेल्टामेथ्रिन (Deltamethrin) (2.5 प्रतिशत) चूरन को एक लीटर पानी में मिलाकर  तीन महीने में प्रत्येक 100 वर्ग मीटर के क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिये। इसके अलावा डीडीवीपी (DDVP) (75 प्रतिशत ईसी) () को 150 लीटर पानी में एक लीटर मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। इन दोनों कीटनाशकों का छिड़काव करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि इनका छिड़काव प्रति 100वर्ग मीटर में कम से कम तीन लीटर हो।

बोरों को कीटाणु रहित बनाने के लिए करें ये उपाय

गोदाम या भंडार गृह में बोरियों में धान की फसल को रखने से पहले दूसरी जगह पर बोरों का धूम्रीकरण कर देना चाहिये। उसके बाद 5 से 7 दिनों के लिए 9 ग्राम प्रति मीट्रिक टन के हिसाब से एलुमिनियम फास्फाइड (Aluminium Phosphide) से धुआं दें। केवल पॉलीथिन से ढके गोदाम में किसान भाइयों को चाहिये कि धान की बोरियों में एलुमिनियम फास्फाइड से 10.8 ग्राम प्रति मीट्रिक टन की दर से धूम्रीकरण करें। पुरानी व नई बोरियों को अलग-अलग रखें और उनमें साफ सफाई का पूरा ध्यान रखें। जिससे दानों में किसी प्रकार का रोग न लग सके।

हवा का रुख देखकर करें भंडारण

धान का भंडारण करते समय हवा के रुख को ध्यान से देखना चाहिये। यदि पुरवैया हवा चल रही हो तब धान की फसल का भंडारण नहीं करना चाहिये।
धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत

धान की खेती की शुरू से लेकर अंत तक संपूर्ण जानकारी, जानिए कैसे बढ़ाएं लागत

हमारा देश भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की लगभग एक तिहाई जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। भारत में अनेक प्रकार की फसलें बोई जाती हैं। प्रत्येक फसल के बोने व काटने का समय अलग अलग होता है। इसी प्रकार धान की भी फसल है जो एक प्रकार की खरीफ की फसल है। यह हमारे देश को लोगों का एक प्रमुख खाद्यान्न है। इसके अलावा मक्का के बाद जो फसल सबसे ज्यादा बोई जाती है वो धान है। अगर इसकी खेती में पर्याप्त सावधानी बरती जाए तो इससे किसान ज्यादा मुनाफा कमा सकता है। धान की खेती की संपूर्ण जानकारी ।

धान की खेती में सबसे महत्वपूर्ण कार्य

धान की खेती में सबसे महत्वपूर्ण कार्य है अच्छे बीज का चयन करना। कई बार किसान महंगे बीज खरीदने के बावजूद भी अच्छी फसल नहीं उगा पता। इसका मुख्य कारण है उसके द्वारा एक स्वस्थ बीज का चयन ना कर पाना। इसके कारण चुना गया बीज महंगा नहीं बल्कि वहां की जलवायु के अनुरूप होना चाहिए। हम जानते हैं कि धान की खेती हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में की जाती है। विभिन्न हिस्सों की। जलवायु भी भिन्न भिन्न होती है इसके लिए किसानों को वहां की जलवायु के हिसाब से उन्नत बीजों का चयन करना चाहिए।

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बुवाई का समय :-

धान की फसल एक प्रकार की खरीफ की फसल है जो मुख्य रूप से बरसात शुरू होने के पहले बोई जाती है। यह फसल मई की शुरुआत में बोई जाती है, ताकि मानसून आते ही किसान धान की रोपाई शुरू कर दें। धान की फसल में मुख्य रुप से ध्यान रखने योग्य बात बीज का शोधन है इसमें किसान कई महंगे बीजों को खरीद कर फसल में अच्छी लागत नहीं पा पाते। इसके लिए किसानों को उच्च गुणवत्ता के बीच के साथ बीजों का उपचार भी करना चाहिए।

बीजोपचार :-

आज की खेती में मुख्य बात बीजों का चयन करना है एवं बीजों का शोधन है। किसानों को बीजों के शोधन के प्रति जागरूक होना चाहिए ऐसा करने से धान की फसल को विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाया जा सकता है धान की 1 हेक्टेयर की रोपाई के लिए बीज शोधन की प्रक्रिया में सिर्फ 25-30 खर्च करने होते हैं। ये भी पढ़े: धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी बीज उपचार करने के लिए हमें एक घोल तैयार करना होता है। इस घोल को तैयार करने के लिए एक बर्तन में 10 लीटर पानी लेते हैं और उसमें लगभग 1.5 किलो नमक मिलाते हैं अब इस पानी ने एक आलू या फिर एक अंडा डालते हैं अगर आलू घील पर तैरने लगे तो समझ जाओ कि हमारा होल तैयार हो गया है और अगर आलू या अंडा घोल पर नहीं तैरता है तो पानी में उस समय तक नमक मिलाते रहें जब तक कि आलू घोल तैरने ना लगे। अब इस घोल में धीरे-धीरे करके धान के बीज डालते हैं जो भी इस घोल के ऊपर तैरने लगते हैं बेबीज कम गुणवत्ता के होते हैं उन्हें निकाल कर बाहर फेंक देना चाहिए और जो भी बोल में डूब जाते हैं वह बीज बुवाई के योग्य होते हैं। इस गोल के माध्यम से हम धान के बीजों का शोधन तीन से चार बार तक कर सकते हैं। बीजों का शोधन करने के बाद प्राप्त बीजों को तीन से चार बार पानी में अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।

क्षेत्र के हिसाब से धान की उन्नत किस्मों का चुनाव :-

हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की मिट्टी और जलवायु पाई जाती है ऐसे में धान की अच्छी फसल पाने के लिए क्षेत्र के हिसाब से बीजों का चयन भी एक प्रमुख कार्य है इसके लिए उस क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से बीजों का चयन किया जाता है।

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बीज की बुवाई/पौधों की रोपाई :-

बीजों की बुवाई के लिए सबसे पहले जमीन को बीजों की बुवाई के योग्य बनाया जाता है। इसके लिए किसान एक नर्सरी तैयार करें और मुख्य खेत में रोपाई करें। सबसे पहले किसान पौधों को नर्सरी में तैयार करें इसके बाद उसे जड़ से उखाड़ कर खेत में ले जाकर उसकी रोपाई करें रोपाई में पौधों की बीच की दूरी का ध्यान रखना चाहिए। एक जगह पर एक से दो पौधों की ही रोपाई की जाए।

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जिस खेत में पानी ना भरता हो उस खेत में धान की रोपाई श्रीविधि से करें। इस विधि में खेत में पानी ना भरने दें इसमें खेत की समय-समय पर सिंचाई करते रहें इस विधि में सिंचाई करने के लिए गेहूं के जैसे ही सिंचाई करें। और धान का प्रबंधन सभी धान की तरह करें।
धान की उन्नत किस्में अपनाकर छत्तीसगढ़ के किसान हो रहे मजबूत

धान की उन्नत किस्में अपनाकर छत्तीसगढ़ के किसान हो रहे मजबूत

रायपुर। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है। यहां धान फसल के लिए अनुकूल वातावरण होने के कारण किसान साल में दो बार धान की फसल लगाते हैं, जो सदियों से उनकी आय का एक बहुत बड़ा साधन बना हुआ। वहीं नई तकनीकों के उपयोग ने भी धान फसल की पैदावार बढ़ाने में काफी अहम भूमिका निभाई है। यदि बात करें अच्छी किस्मों की तो यहां जवा फूल, दुबराज, विष्णु भोग, लुचई, देव भोग, कालीमूज, बासमती के अलावा कुछ ऐसी किस्में हैं, जिनसे किसान ज्यादा आय अर्जित कर रहे हैं। वहीं रायपुर में स्थित इंदिरा गांधी कृषि महाविद्यालय ने धान की नई-कई किस्मों की खोज की है, जिसको अपनाकर छत्तीसगढ़ के किसान समृद्धि की ओर तेजी से अग्रसर हो रहे हैं। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा संचालित की जा रही योजनाओं का लाभ भी किसान बखूबी उठा रहे हैं और अपने सपनों को पंख लगा रहे हैं।

रोज सामने आ रही आत्मनिर्भरता की कहानी

कभी नक्सली और पिछड़े राज्यों में शुमार छत्तीसगढ़ आज खेती-किसानी के मामले में देश में सिरमौर बना हुआ है। यहां के किसान इतने आत्मनिर्भर हो चुके हैं कि उन्हें अब अपने भविष्य की चिंता कम ही सताती है। वहीं सरकार की ऋण माफी और बोनस जैसी योजनाओं के कारण भी यहां के किसान खेती की ओर और आकर्षित हुए हैं, जिनके आत्मनिर्भर बनने की कहानी अक्सर सामने आती रहती है। कई किसान तो ऐसे थे जिनकी हालत काफी खराब थी, पर धान की उन्नत किस्म अपनाकर उन्होंने न केवल अपना जीवन सुधारा, बल्कि एक प्रकार से राज्य में खेती किसानी का प्रचार-प्रसार कर जो लोग खेती किसानी छोड़ने का मन बना चुके थे, उन्हें फिर से खेती करने के लिए प्रोत्साहित भी किया।


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नर-नारी धान अपनाकर समृद्ध बन रहे किसान

वहीं छत्तीसगढ़ में एक ऐसी धान की किस्म भी है जिसको अपनाकर किसान अधिक मुनाफा कमा रह हैं। इस किस्म का नाम नर-नारी धान है। धान की इस किस्म को अपनाकर किसान एक एकड़ में एक लाख रुपए तक का फायदा ले रहे हैं। शायद आप में से कईयों ने धान की इस किस्म के बारे में न सुना हो, लेकिन यह काफी मुनाफे की फसल है। इसमें नर व मादा पौधों को खेत में ही क्रास यानी पूरक परागण कराया जाता है। इस दौरान नर पौधों का पराग मादा पौधे में जाता है, जिससे बीज बनता है और इसी से धान के पौधे तैयार किये जाते हैं। धान की इस किस्म की खासियत ये हैं, कि इसकी एक एकड़ खेती में 10 से 15 क्विंटल की पैदावार होती है। धान के इस बीज की मांग मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में ज्यादा है। छत्तीसगढ़ के किसान भाई इस किस्म को लगाकर तगड़ा मुनाफा ले रहे हैं।

महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में भी बढ़ी मांग

नर-नारी धान की खासियत है कि यदि आप एक एकड़ में इस धान की बुवाई करते हैं, तो एक एकड़ में 15 क्विंटल धान होता है. प्रति क्विंटल धान की कीमत लगभग 9 हजार रुपए है. यानी एक एकड़ के खेत में आपको 1.35 लाख रुपए मिल जाते हैं. छत्तीसगढ़ के धमतरी, बालोद व दुर्ग जिले में किसान इस किस्म का धान उगा रहे हैं। धमतरी में 5 हजार एकड़ से ज्यादा में इस तरह की धान की खेती की जा रही है। रायपुर में धीरे-धीरे इसका रकबा बढ़ने लगा है। नर-नारी धान का परागण करने के लिए रस्सी या बांस का सहारा लिया जाता है। दो कतार में नर व 6-8 कतारों में मादा पौधे होते हैं। इन्हें सीड पैरेंट्स भी कहा जाता है। इसकी रोपाई का तरीका दूसरी किस्मों से बिल्कुल अलग है। इसके पौधे को रोपाई से तैयार किया जाता है। बोनी या लाईचोपी पद्धति से इस धान का उत्पादन संभव नहीं है। पादप प्रजननन विभाग, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के एचओडी डॉ. दीपक शर्मा ने कहा कि नर-मादा धान की किस्म से किसानों को अच्छा फायदा हो रहा है। इसका रकबा बढ़ रहा है। ये हाइब्रिड धान है जिसका बीज बनता है।


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छत्तीसगढ़ में साल दर साल धान खरीदी का नया रिकॉर्ड बन रहा

छत्तीसगढ़ में साल दर साल धान खरीदी का नया रिकॉर्ड बन रहा है। सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ के किसानों ने वर्ष 2021-21 में किसानों ने सरकार को धान बेचकर करीब 20 हजार करोड़ रुपये कमाए हैं। दूसरी ओर राज्य सरकार का दावा भी है कि अब खेती-किसानी छत्तीसगढ़ में लाभकारी व्यवसाय बन गया है। आंकड़ों के मुताबिक चालू खरीफ विपणन वर्ष 2021-22 में धान की रिकॉर्ड खरीदी की गई है। इस साल 21.77 लाख किसानों से करीब 98 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा गया है। इसके एवज में किसानों को करीब 20 हजार करोड़ रुपयों का भुगतान राज्य सरकार द्वारा किए जाने का दावा किया गया है।

सुगंधित धान की वैज्ञानिकों ने सहेजी किस्में

वहीं दूसरी ओर छग में जिस धान की मांग ज्यादा बढ़ रही है और सरकार जिस धान को ज्यादा महत्व दे रही है वैसे-वैसे यहां से कुछ धान की किस्में विलुप्त होती जा रही हैं और कुछ तो विलुप्ति की कगार पर भी पहुंच गई थी ऐसे में इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने किसानों के साथ मिलकर इन्हें सहेजा। कृषि विज्ञान केंद्रों ने भी इस काम में पूरी मदद की। महज 10-15 साल पहले तक जवा फूल, दुबराज, विष्णु भोग, लुचई जैसी सुगंधित धान की किस्में राज्य की पहचान थी। हालांकि किसानों को इनकी पैदावार से लाभ नहीं हो रहा था। धीरे-धीरे स्वर्णा, एमटीयू 1010 जैसी किस्मों को सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदने लगी। ऐसे सुगंधित धान की कई वैरायटी विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई। कई गांवों से तो ये गायब ही हो गई। कुछ किसान अपने उपयोग के लिए सीमित क्षेत्र में उगा रहे थे, लेकिन उनकी संख्या व एरिया सीमित था। इसे गंभीरता से लेते हुए चार साल पहले इंदिरा गांधी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी रायपुर ने इन्हें सहेजने का बीड़ा उठाया और इन किस्मों को सहेजने में कड़ी भूमिका निभाई। कृषि वैज्ञानिकों ने छत्तीसगढ़ के अलग-अलग इलाकों में जाकर न सिर्फ इन किस्मों को ढूंढा बल्कि उन्हें सहेजने में भी बड़ी भूमिका निभाई।

कृषि के क्षेत्र में छग को मिले कई पुरस्कार

धान की अलग-अलग प्रकार के पैदावार के लिए जाने जाने वाले छत्तीसगढ़ ने राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। छत्तीसगढ़ को उन्नत कृषि प्रबंधन और किसानों के लिए बनाई गई योजनाओं के लिए केंद्र सरकार द्वारा कई वर्गो में सम्मानित किया जा चुका है। छत्तीसगढ़ को कई राष्ट्रीय अवार्ड भी अब तक मिल चुके हैं, जिससे विश्व पटल पर छत्तीसगढ़ एक सितारे के रूप में चमक और दमक रहा है।
जानें भारत में सबसे बड़े पैमाने पर की जाने वाली फसलों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

जानें भारत में सबसे बड़े पैमाने पर की जाने वाली फसलों से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की 70 प्रतिशत आबादी खेती किसानी पर ही निर्भर रहती है। कोरोना जैसी महामारी में भी केवल कृषि क्षेत्र ने ही देश की अर्थव्यवस्था को संभाला था। भारत में कृषि को देश की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। भारत पहले से ही बहुत सारी फसलों का बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है। इन फसलों के अंतर्गत मक्का, दलहन, तिलहन, चाय, कॉफी, कपास, गेहूं, धान, गन्ना, बाजरा आदि शम्मिलित हैं। अन्य देशों की तुलना में भारत की भूमि कृषि हेतु अत्यधिक बेहतरीन व उपजाऊ होती है।


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भारत में प्रत्येक फसल उत्पादन हेतु विशेष जलवायु एवं मृदा उपलब्ध है। जैसा कि हम जानते ही हैं, कि फसल रबी, खरीफ, जायद इन तीन सीजन में की जाती है, इन सीजनों के अंतर्गत विभिन्न फसलों का उत्पादन किया जाता है। भारत की मृदा से उत्पन्न अन्न का स्वाद विदेशी लोगों को भी बहुत भाता है। आंकड़ों के अनुसार भारत में बाजरा, मक्का, दलहन, तिलहन, कपास, धान, गेहूं से लेकर गन्ना, चाय, कॉफी का उत्पादन विशेष तौर पर किया जाता है, परंतु इन फसलों में से धान की फसल का उत्पादन भारत के सर्वाधिक रकबे में उत्पादित की जाती है।

कौन कौन से राज्यों में हो रही है, धान की खेती

हालाँकि धान एक खरीफ सीजन की प्रमुख नकदी फसल है। साथ ही, देश की आहार श्रृंखला के अंतर्गत धान सर्वप्रथम स्थान पर आता है। भारत के धान या चावल की खपत देश में ही नहीं विदेशों में भी भारतीय चावल की बेहद मांग है। एशिया के अतिरिक्त विभिन्न देशों में प्रतिदिन चावल को आहार के रूप में खाया जाता है। यही कारण है, कि किसान निर्धारित सीजन के अतिरिक्त भी विभिन्न राज्यों में बारह महीने धान का उत्पादन करते हैं। अगर हम धान का उत्पादन करने वाले कुछ प्रमुख राज्यों के बारे में बात करें, तो पंजाब, हरियाणा, बिहार, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और आन्ध्र प्रदेश में धान का उत्पादन अच्छे खासे पैमाने पर किया जाता है।

धान की खेती किस प्रकार की जाती है

चावल केवल भारत के साथ-साथ विभिन्न देशों की प्रमुख खाद्यान्न फसल है। धान की फसल के लिए सबसे जरूरी बात है, इसको जलभराव अथवा ज्यादा बरसात वाले क्षेत्र धान के उत्पादन हेतु बेहतर साबित होते हैं। इसकी वजह यह है, कि धान का अच्छा उत्पादन प्राप्त करने हेतु बहुत ज्यादा जल आपूर्ति की जरूरत होती है। विश्वभर में धान की पैदावार के मामले में चीन पहले स्थान पर है, इसके उपरांत भारत दूसरे स्थान पर धान उत्पादक के रूप में बनकर उभरा है। चावल की खेती करते समय 20 डिग्री से 24 डिग्री सेल्सियत तापमान एवं 100 सेमी0 से ज्यादा बारिश एवं जलोढ़ मिट्टी बहुत अच्छी होती है। भारत में मानसून के दौरान धान की फसल की बुवाई की जाती है, जिसके उपरांत धान की फसल अक्टूबर माह में पकने के उपरांत कटाई हेतु तैयार हो जाती है।

इन राज्यों में धान का उत्पादन 3 बार होता है

देश के साथ अन्य देशों में भी धान की काफी खपत होती है, इसी वजह से धान की फसल कुछ राज्यों के अंदर वर्षभर में 3 बार उत्पादित की जाती है। इन राज्यों के अंतर्गत ओडिशा, पश्चिम बंगाल एवं असम प्रथम स्थान पर आते हैं, जो धान के उत्पादन हेतु प्राकृतिक रूप से समृद्ध राज्य हैं। इन राज्यों में कृषि रबी, खरीफ अथवा जायद के अनुरूप नहीं बल्कि ऑस, अमन व बोरो अनुरूप वर्ष में तीन बार धान की फसल का उत्पादन किया जाता है।

जलवायु परिवर्तन से क्या हानि हो सकती है

धान एक प्रमुख नकदी फसल तो है, परंतु ग्लोबल वार्मिंग एवं मौसमिक बदलाव के कारण से फिलहाल धान के उत्पादन में बेहद हानि हुई है। वर्ष 2022 भी धान के किसानों हेतु अत्यंत चिंताजनक रहा है। देरी से हुए मानसून की वजह से धान की रोपाई ही नहीं हो पाई है, बहुत सारे किसानों द्वारा धान की रोपाई की जा चुकी थी। परंतु अक्टूबर माह में कटाई के दौरान बरसात की वजह से आधे से ज्यादा धान नष्ट हो गया, इसलिए वर्तमान में चावल के उत्पादन की जगह पर्यावरण एवं जलवायु के अनुरूप फसलों के उत्पादन को प्रोत्साहन दिया जाता है।

धान की फसल के लिए योजनाएं एवं शोध

प्रत्येक खरीफ सीजन के दौरान समय से पूर्व धान का उत्पादन करने वाले किसानों हेतु बहुत सारी योजनाएं जारी की जाती हैं। साथ ही, कृषि के व्यय का भार प्रत्यक्ष रूप से किसानों को प्रभावित न कर सके। विभिन्न राज्य सरकारें न्यूनतम दरों पर चावल की उन्नत गुणवत्ता वाले बीज प्रदान करती हैं। धान की सिंचाई से लेकर कीटनाशक व उर्वरकों हेतु अनुदान दिया जाता है। धान की खेती के लिए मशीनीकरण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। साथ ही, धान की फसल को मौसमिक प्रभाव से संरक्षण उपलब्ध कराने हेतु फसल बीमा योजना के अंतर्गत शम्मिलित किया गया है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, हाइब्रिड चावल बीज उत्पादन एवं राष्ट्रीय कृषि विकास योजना आदि भी चावल का उत्पादन करने वाले कृषकों को आर्थिक एवं तकनीकी सहायता मुहैय्या कराती है। चावल के सबसे बड़े शोधकर्ता के आधार पर अन्तर्राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, मनीला (फिलीपींस) एवं भारत में राष्ट्रीय चावल अनुसन्धान संस्थान, कटक (उड़ीसा) पर कार्य कर रहे हैं, जो किसानों को धान की वैज्ञानिक कृषि करने हेतु प्रोत्साहित कर रहे हैं।
प्रचंड बारिश और भयावय बाढ़ से पीड़ित किसानों ने फसल बर्बादी को लेकर सरकार से क्या मांग की

प्रचंड बारिश और भयावय बाढ़ से पीड़ित किसानों ने फसल बर्बादी को लेकर सरकार से क्या मांग की

किसानों के अनुसार सबसे ज्यादा धान की फसल क्षतिग्रस्त हुई है। किसान का एक एकड़ धान पर अब तक 20-25 हजार रुपये खर्च आ चुका है। मूसलाधार बारिश और बाढ़ के चलते बहुत से खेतों में किसानों को एक भी दाने की उम्मीद नहीं है। किसानों की यह मांग है, कि प्रति एकड़ कम से कम 60 हजार रुपये का मुआवजा दिया जाए। क्योंकि, एक एकड़ से लगभग 30 क्विंटल धान की बर्बादी हुई है। निरंतर बारिश और बाढ़ ने जनपद में भयंकर तबाही मचाई है। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अनुसार 24 हजार हेक्टेयर फसल को अत्यंत क्षति पहुँची है। संबंधित रिपोर्ट सरकार के लिए भेज दी गई है, जिन किसानों के खेतों में जलभराव है, उनकी ज्यादा समस्याएं बढ़ गई हैं। फसल पर प्रति एकड़ हजारों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद किसानों के हाथ खाली हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि पीड़ित किसान मुआवजे की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। धान की फसल सबसे ज्यादा क्षतिग्रस्त हुई है। 19 हजार 578 हेक्टेयर में खड़ी धान की फसल पूर्णतय बर्बाद हो चुकी है। इसके अतिरिक्त गन्ना, मक्का व बाकी फसलों को भी हानि हुई है। किसान संगठनों ने 60 हजार एकड़ के हिसाब से मुआवजे की गुहार की है।

किसान धान पर प्रति एकड़ हजारों की लागत लगा बैठा है

किसानों ने कहा है, कि सबसे अधिक नुकसान धान की फसल में देखा गया है। एक एकड़ भूमि पर अब तक 20-25 हजार रुपये का खर्च आ चुका है। इतना ही नहीं कुछ खेत ऐसे भी हैं, जहां किसानों को एक भी दाने की आशा नहीं रही है। किसानों की मांग है, कि प्रति एकड़ कम से कम 60 हजार रुपये मुआवजा प्रदान किया जाए। क्योंकि, एक एकड़ से लगभग 30 क्विंटल धान की क्षति हुई है। किसानों की मांग है, कि सरकार अतिशीघ्र प्रभावित इलाकों की गिरदावरी करवा कर पीड़ित किसानों का मुआवजा उपलब्ध कराया जाए। ये भी पढ़े: बिहार में धान की दो किस्में हुईं विकसित, पैदावार में होगी बढ़ोत्तरी

किसानों ने अपनी दुखभरी दास्ताँ की जाहिर

पूर्णगढ़ के किसान मांगे राम का कहना है, कि उनकी पांच एकड़ धान की फसल पूर्णतय खत्म हो चुकी है। खेतों में जलभराव की स्थिति पैदा हो गई है। बारिश व बाढ़ के पानी ने फसलों को बर्बाद करके रख दिया है। खेत की तरफ देखकर केवल मायूसी हाथ लग रही है। अगली फसल की बुवाई समय पर हो पाएगी इसकी भी कोई उम्मीद नहीं है।

खेतों में केवल जलभराव ही जलभराव

पूर्णगढ़ के किसान नवनीत ने कहा है, कि जिन खेतों में हरी भरी फसलें लहलहा रही थी, आज उन फसलों की जगह पानी ही पानी दिखाई दे रहा है। बतादें, कि तकरीबन एक सप्ताह से जलभराव की स्थिति है। निकासी की भी समुचित व्यवस्था नहीं हो पा रही है। दरअसल, लगभग तीन एकड़ फसल क्षतिग्रस्त हो चुकी है। किसानों को मुआवजा देकर सरकार आर्थिक सहयोग करे।

किसान को प्रति एकड़ हजारों खर्च करने पर भी निराशा हाथ लगी

किसान विनोद कुमार ने बताया है, कि फसल की अच्छी पैदावार की आशा पर किसान भविष्य की योजना तय करता है। अगर फसल ही बर्बाद हो गई तो किसान के पास कुछ भी नहीं बचता है। किसान भाई अब तक प्रति एकड़ धान पर हजारों रुपये खर्च कर चुके हैं। इसके बावजूद भी किसान के हाथ खाली हैं। किसानों का बजट पूर्णतय बिगड़ चुका है। सरकार को आर्थिक सहायता के लिए आगे आना चाहिए। ये भी पढ़े: हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें

फसलों की ऐसी दयनीय स्थिति कभी नहीं देखी

किसान चूहड़ सिंह का कहना है, कि फसलों की ऐसी दयनीय स्थिति आज तक नहीं देखी। हालांकि, बाढ़ विगत समय में भी आती रही हैं। परंतु, इतनी फसलीय बर्बादी कभी भी नहीं हुई, इस बार तो ज्यादा हद हो गई। उनकी 12 एकड़ के आसपास फसल पूर्णतय बर्बादी की कगार पर है। लाखों रुपये की हानि हो चुकी है। बजट पूर्णतय ड़गमगा चुका है। खेतों की तरफ देखकर कलेजा मुह को आता है। कृषि उपमंडल अधिकारी डॉ. राकेश पोरिया का कहना है, कि बाढ़ व बारिश की वजह से जिले के प्रत्येक खंड में हानि हुई है। सबसे अधिक हानि धान की फसल में हुई है। हमने रिपोर्ट तैयार करके सरकार को भेज दी है। किसानों से परस्पर संपर्क साधा जा रहा है। विभाग की टीम खेतों में जाकर लगातार हानि का मुआयना कर रही है। प्रभावित फसलों का मुआवजा निर्धारित करना सरकार के कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आता है।